Ticker

6/recent/ticker-posts

The Indian partnership Act 1932

 



The Indian partnership Act 1932
भारतीय साझेदारी अधिनियम की धारा  4 के अनुसार 
साझेदारी उन व्यक्तियों का      पारस्परिक सम्बन्ध है  जो किसी ऐसे कारोबार के लाभ को आपस में बांटने के लिए सहमत हुए हों जिसे वे सब अथवा उन सबकी ओर से किसी एक व्यक्ति दारा चलाया जाता है वे सभी व्यक्ति जो एक दूसरे के साथ साझेदारी व्यवसाय में सम्मिलित हुए हैं व्यक्तिगत रूप से साझेदार तथा सामूहिक रूप से फार्म कहलाते हैं और जिस नाम से उनका कारोबार चलता है वह फार्म का नाम कहलाता
है    


 दो या दो से अधिक व्यक्तियों का होना
The Indian partnership Act 1932

साझेदारी के लिए कम से कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है क्योंकि अकेला व्यक्ति किसी का साझेदार नहीं हो सकता जादातर साझेदारों की अधिकतम संख्या का प्रशन है भारतीय साझेदारी अधिनियम इस संबंध में मौन है परंतु भारतीय कंपनी अधिनियम 1965 की धारा 11 के अनुसार किसी बैंकिंग व्यवसाय करने वाली फर्म में अधिक से अधिक 11 तथा गैर बैंकिंग व्यवसाय करने वाली फर्म में अधिक से अधिक 20 साझेदार हो सकते हैं  इस संख्या से अधिक साझेदारों वाली फार्म अवैध मानी जाती है



ठहराव अथवा अनुबंध का होना वास्तव में साझेदारी का जन्म साझेदारों के बीच सपष्ट अथवा गर्वित ठहराव अनुबंध के आधार पर होता है साझेदारी में अनुबंध की अनिवार्यता पर बल देते हैं हुएं धारा 5 मैं सपष्ट कहां गया है साझेदारों का संबंध अनुबंध द्वारा उत्पन्न होता है स्थिति द्वारा नहीं इस विश्वास के आधार पर ही साझेदारी कुछ दूसरे संबंधों से भिन्न समझी जाती है


संयुक्त हिंदू परिवार के सदस्यों का सम्मान अनुबंध द्वारा उत्पन्न नहीं होता अंत वे साझेदार नहीं माने जाते उनका व्यवसाय भी साझेदारी का व्यवसाय नहीं माना जाता इसी प्रकार किसी साझेदार की मृत्यु के पश्चात मृतक साझेदार का पुत्र साझेदारी संपत्ति में पिता के हि का दावा तो कर सकता है
 
परंतु वह फर्म में तब तक  साझेदार नहीं बन सकता जब तक वह अन्य साझेदारों के साथ साझेदारी का अनुबंध नहीं कर लेता संक्षेप में कहा जा सकता है कि व्यक्तियों की स्थिति कानून के क्रियान्वयन (operation of low )अथवा वंशागति( inheritance )से साझेदारी के स्थापना नहीं होती अंत साझेदारों के मध्य अनुबंध साझेदारी का मूलाधार होता है


यह अनुबंध लिखित या मौखिक हो सकता है इस अनुबंध में भी वैध अनुबंध के सभी आवश्यक लक्षण होने चाहिए साझेदारी के लिए व्यवसाय का होना आवश्यक है यदि बिना व्यवसाय के दो या दो से अधिक व्यक्ति कोई ठहराव करे तो या ठहराव साझेदारी स्थापित नहीं कर सकता करोबार एक विस्तृत शब्द है जिसमे व्यापार-व्यवसाय पैसा प्रत्यक्ष सेवा सम्मिलित होती है जो लाभ कमाने के उद्देश्य से की जाती है कारोबार वैधानिक होना चाहिए अन्यथा साझेदारी अवैध होगी


लाभ का बंटवारा इस अनिवार्य तत्वों के अनुसार कारोबार करने के अनुबंध का उद्देश्य साझेदारों के बीच कारोबार के लाभ को बांटने का होना चाहिए हनी शब्दों में साझेदारी का लक्ष्य लाभ कमाना होना चाहिए क्योंकि तभी तो साझेदारों के मध्य लाभ का बंटवारा हो सकता है अंत यदि कोई कारोबार जनकल्याण या का परोपकार के उद्देश्य से ना कि लाभ कमाने के उद्देश्य से किया जाता है


तो उसे साझेदारी नहीं कहा जा सकता है साझेदारी का व्यवसाय सभी साझेदारों द्वारा चलाया जा सकता है परंतु सभी साझेदारों का सक्रिय रुप से व्यवसाय में भाग लेना अनिवार्य नहीं होता अंत कारोबार सभी साझेदारों के तरफ से किसी एक साझेदार द्वारा भी चला जा सकता है 

पारस्परिक एजेंसी का नियम साझेदारी का महत्वपूर्ण लक्षण है अंत प्रत्येक साझेदार अपने और अन्य साझेदारों के लिए एजेंट तथा मालिक दोनों ही होता है अर्थात कारोबार के सामान्य कार्य संचालन में वह अपने कार्य से अन्य साझेदारों को और अन्य साझेदारों के कार्यों से स्वयं को बाधय करता है

Post a Comment

0 Comments